राज्य स्वास्थ्य प्राधिकरणः प्रदेश के समस्त राजकीय कार्मिकों एवं पेंशनर्स को राज्य सरकार स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत चिकित्सकीय उपचार को प्रभावी बनाने को लेकर शासन ने नए निर्देश जारी किए हैं। चिकित्सा प्रतिपूर्ति में कार्मिकों या पेंशनर्स को किसी प्रकार की परेशानी न उठानी पडे, नई व्यवस्थाओं में इसका खास ध्यान रखा गया है।नए निर्देशों के अनुसार चिकित्सा प्रतिपूर्ति दावों के निस्तारण हेतु यह जरूरी है कि शासनादेश के अनुरूप जारी अनिवार्यता प्रमाण पत्र में बिल बाउचर समेत सभी जानकारियों स्पष्ट रूप से भरी हों।
नियमों के हिसाब से बिल भुगतान में तेजी
चिकित्सक के साथ ही प्राधिकृत चिकित्सक या चिकित्सा अधिकारी के हस्ताक्षर उसमें होने चाहिए। अनिवार्यता प्रमाण पत्र में यदि किसी तरह का संशोधन हेतु ओवर राइटिंग होती है तो उसे प्राधिकृत या अधीक्षक से सत्पापित कराना होगा।दावों में उपचार अवधि के बिल वाउचर मूल रूप से प्रस्तुत करने होंगे। सभी बिलों पर उपचार कर रहे चिकित्सक के हस्ताक्षर व मुहर जरूरी है। मरीज की मृत्यु की स्थिति में बिल वाउचर के साथ ही मृत्यु विवरण की कॉपी देनी होगी। दावों को उपचार समाप्ति के छह माह के भीतर प्रस्तुत किया जाना अनिवार्य है। निर्धारित अवधि के बाद वह कालातीत माने जाएंगे।
2 हफ्तों में ही किया जाएगा भुगतान
दावों का भुगतान सीजीएचएस दरों पर नहीं हुआ तो इसके लिए प्रमाणितकर्ता अधिकारी जिम्मेदार होंगे। सही ढंग से प्रस्तुत दावों का भुगतान एक पखवाड़े के भीतर ऑनलाइन ही किया जाएगा। राज्य स्वास्थ्य योजना के अंतर्गत लाभार्थी के आश्रितों की आयुसीमा उत्तराखंड सेवा निवृति लाभ अधिनियम 2018 के अनुरूप होगी। कार्मिकों व पेंशनर्स के चिकित्सापूर्ति दावे सीधे प्रस्तुत नहीं होंगे बल्कि परीक्षण उनके मूल विभाग, प्रशासनिक विभाग के मुखिया की ओर से प्रतिहस्ताक्षरित कर प्रेषित किए जाएंगे। यदि किसी परिस्थति में कार्मिक पेंशनर या उसके आश्रित का गोल्डन कार्ड नहीं बन पाया है तो उनकी आईडी पर भुगतान किया जा सकेगा।प्रतिपूर्ति दावों को पूर्ण कराए जाने का दायित्व संबंधित के मूल विभाग का होगा। लाभार्थियों की शिकायतों के निस्तारण हेतु लोक शिकायत निवारण की व्यवस्था भी नए निर्देशों में की गई है।