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आइसोटोप सिग्नेचर के जरिये हो सकता है खुलासा

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<strong><u>आइसोटोप सिग्नेचर के जरिये हो सकता है खुलासा </u></strong>

13 जनवरी को पहाड़ों पर बारिश हुई. जोशीमठ, औली और दूसरे क्षेत्रों में भी बरसात होने और बर्फ गिरने के कारण पानी का रिसाव एक बार फिर बढ़ गया. इस पर लगातार नज़र रखी जा रही है.

डॉ रंजीत सिन्हा,सचिव ,आपदा प्रबंधन

जे पी कॉलोनी में आ रहे पानी का स्रोत क्या है इस पर भी बहस छिड़ी हुई है. मटमैला पानी अपने साथ कई तरह के केमिकल्स और गन्दगी लेकर आ रहा है. साल शुरू होते ही जोशीमठ में आई इस मुसीबात में ये जलधारा भी एक पहेली बनी हुई है. कुछ दिन तक यहाँ पानी की जलधारा का स्रोत क्या है इसे पता लगाने की कोशिश की जा रही है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी ने यहाँ के नमूने इकट्ठे किये है. 4 जनवरी को यहाँ से 550 लीटर पानी प्रति मिनट की दर से निकल रहा था जो 13 जनवरी तक घटकर 177 लीटर प्रति मिनट हो गया था. कई वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पानी के निकलने की रफ़्तार में कमी आते ही समस्या कम हो जाएगी. लेकिन 14 जनवरी को फिर से पानी निकलने की रफ़्तार बढ़कर 240 लीटर प्रति मिनट आंकी गई.

मारवाड़ी में बनी जे पी कॉलोनी जोशीमठ का सबसे निचला क्षेत्र है और जोशीमठ शहर से करीब ९ किलोमीटर दूर है. ऊपर की पहाड़ियों के बीच से होकर पानी यहाँ आने की जांच के लिए कई तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है. पानी कहाँ से रिस रहा है या इसका मूल स्रोत क्या है इसका पता  आइसोटोप सिग्नेचर के जरिये लगाया जा सकता है. उंचाई पर पानी के जितने भी स्रोत हैं उनके नमूने लेकर इस मटमैले पानी से मिलान कराकर तस्वीर साफ़ हो सकती है.

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