जोशीमठ नगर के भवनों में दरारआने के मामले में राज्य सरकार ने विशेषज्ञों की कमेटी बनाई जो लगातार सर्कार को अपनी अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहे हैं. इस कमेटी में उत्तराखंड आपदा प्रबंधन विभाग, देहरादून, नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ डिजास्टर मैनेजमेंट , नई दिल्ली, सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (CBR) रुड़की, आईआईटी रुड़की, जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया, कोलकाता, एन आर एस सी – इसरो, हैदराबाद , सी जी डब्लू बी, नई दिल्ली, सर्वे ऑफ़ इण्डिया, देहरादून , आई आई आर एस, देहरादून, एन जी आर आई, हैदराबाद, भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान, और वाडिया इंस्टीट्यूट आफ हिमालयन जियोलॉजी के अतिरिक्त अन्य कई संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हैं ।
तमाम कमेटियों ने अपनी अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट में जोशीमठ के भवनों में दरार आने के कारण खोजे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक इस क्षेत्र के उच्च हिमालय में तीव्र ढलान वाली खुली चट्टाने है। जोशीमठ और आसपास के क्षेत्रों में ढीली मिट्टी है। 2021 में जोशीमठ में 190 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई थी। इसके बाद ही भवनों में दरार की समस्या और ज्यादा गहरा गई है।
जोशीमठ के जिस हिस्से में समस्या ज्यादा आई है वो सिंहद्वार से मनोहर बाग़ (जे पी कॉलोनी ) तक का सीधा हिस्सा है. 300 मीटर चौड़े और 700 मीटर लम्बे हिस्से में दरारें पड़ने के खास कारण सामने आये हैं. इसी क्षेत्र में एक फाल्ट लाइन है. इसे सामान्य शब्दों में कहा जाए तो पहाड़ के बीच एक दरार है. यहीं ढीली मिटटी के ऊपर बने भवन नीचे की तरफ धंस रहे हैं. जहाँ ज्यादा भार पड़ रहा है वहां समस्या ज्यादा दिखाई दी.
जोशीमठ के पास बद्रीनाथ धाम औली, हेमकुंड साहिब, फूलों की घाटी माणा, और पांडुकेश्वर जैसे धार्मिक एवं पर्यटक स्थल है। इन सभी का दबाव जोशीमठ पर पड़ता है. यहां भौगोलिक खतरों को नजरअंदाज करके अनियोजित विकास हुआ है।