एनसीईआरटी की किताबों से उत्तराखंड का चिपको आंदोलन हटा दिया गया है। एनसीईआरटी की किताबों में यूपी हिल्स के नाम से चिपको आंदोलन का एक हिस्सा था। 1970 के दशक में यह आंदोलन तत्कालीन उत्तर प्रदेश के चमोली जनपद में बहुत तेजी से फैला था । स्थानीय ग्रामीण पेड़ों के कटान का विरोध कर रहे थे । वन विभाग ने जंगल के ठेकेदारों को हजारों पेड़ काटने का ठेका दिया था। इसके बाद यह आंदोलन तेज हो गया।
इस आंदोलन को चार प्रमुख नेताओं ने नेतृत्व प्रदान किया। सुंदरलाल बहुगुणा, चंडी प्रसाद भट्ट ,गोविंद सिंह रावत और गौरा देवी इस आंदोलन को लीड कर रहे थे। इनके पीछे पूरे क्षेत्र की जनता थी पहाड़ के दूसरे हिस्सों से भी इस आंदोलन को जबरदस्त समर्थन मिल रहा था। ग्रामीण पेड़ों के कटान के समय पेड़ों से चिपक गए और सीधा कहा कि पेड़ के साथ-साथ हमारी गर्दन भी काटी जाएगी।
इसी का नतीजा हुआ कि पहले तो उत्तर प्रदेश सरकार और बाद में केंद्र सरकार को भी इस आंदोलन के बारे में पता चला। इस आंदोलन का प्रभाव यह हुआ कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने वनों के कटान पर अगले 15 वर्षों के लिए रोक लगा दी थी। और साथ-साथ वन एवं पर्यावरण जैसा महत्वपूर्ण मंत्रालय इसी के बाद तैयार किया गया ।अब उत्तराखंड के चिपको आंदोलन की जानकारी छात्र छात्राओं को एनसीईआरटी की किताबों में नहीं मिलेगी।
इसको लेकर अलग-अलग तरह की प्रतिक्रियाएं आ रही हैं। सोशल मीडिया पर भी कई लोगों ने इस पर अपने टिप्पणियां की हैं। दिनेश प्रसाद सकलानी मूल रूप से उत्तराखंड के रहने वाले हैं और वह इस समय एनसीईआरटी के अध्यक्ष हैं ।कई लोग उनसे सीधा सवाल पूछ रहे हैं कि आप तो उत्तराखंड के ही हैं , ऐसे में आपने चिपको आंदोलन को क्यों एनसीआरटी के सिलेबस हटाया?