उत्तराखंड में सीबीआई के बाद अब ED की एंट्री होने जा रही है. ED यानी एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट यानी प्रवर्तन निदेशालय ने उत्तराखंड वन विभाग को चिट्ठी लिखकर पांच आईएफएस अधिकारियों सहित कुल 8 अधिकारियों के वित्तीय ब्यौरे तलब किए हैं। लेकिन वन विभाग ने अभी तक प्रवर्तन निदेशालय को इसकी जानकारी नहीं दी है। वन विभाग ने शासन को चिट्ठी लिखकर मंजूरी मांगी है कि क्या इन आठ अधिकारियों के वित्तीय जानकारी परिवर्तन निदेशालय को दिए जाएं या नहीं दिए जाएं? लेकिन शासन ने अक्टूबर 2023 से इस फाइल पर कोई फैसला नहीं लिया है।
कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से जुड़ा है मामला
मामला उत्तराखंड के विश्व प्रसिद्ध कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से जुड़ा हुआ है। यहां छह हजार पेड़ों के अवैध रूप से कटान का मामला चर्चाओं में गरमाया हुआ है। पहले विजिलेंस की जांच हुई और उसके बाद एसआईटी के गठन के लिए भी राज्य सरकार तैयारी कर रही थी। लेकिन मामला नैनीताल हाईकोर्ट में गया और नैनीताल हाईकोर्ट के निर्देश के बाद इस पूरे मामले की जांच सीबीआई कर रही है।
अवैध कटान और निर्माण का है मामला
सरकारी अधिकारियों पर आरोप है कि इन्होंने लापरवाही की है। गलत तरीके से पेड़ों के कटान की इजाजत दी गई है। साथ-साथ कॉर्बेट पार्क के आसपास अवैध रूप से निर्माण कार्य हो गए हैं। जब यह पूरा प्रकरण चल रहा था तो भारत सरकार के महानिदेशक वन ने मामले की जांच की थी। तीन सदस्य जांच ने अपने रिपोर्ट में गड़बड़ झाले की पुष्टि की थी और आठ अधिकारियों के नाम का खुलासा किया था। इसके बाद मामले की जांच सीबीआई कर रही है और अब सीबीआई के साथ-साथ ED की एंट्री भी होने जा रही है।
5 आईएफएस कौन हैं?
लेकिन शासन स्तर पर फाइल पर मंजूरी अभी नहीं दी गई है।जिन आठ अधिकारियों के नाम आए हैं, उनमें से पांच आईएफएस अधिकारी हैं। उनमें तीन अभी वन विभाग में ही तैनात है। इनमें सुशांत पटनायक, राहुल और अखिलेश तिवारी शामिल है। जबकि जे एस सुहाग रिटायर हो चुके हैं और लंबी बीमारी के बाद उनका निधन भी हो चुका है। किशन चंद भी रिटायर हो चुके हैं और उन्हें जेल की सलाखों के पीछे भी जाना पड़ा था।
सरकार किसी को नहीं बचा रही: वन मंत्री सुबोध उनियाल
उत्तराखंड के वन मंत्री सुबोध उनियाल कहते हैं कि राज्य सरकार इस मामले को लेकर पहले ही गंभीर है। मामले का खुलासा होने के बाद जब जांच हुई तो जे एस सुहाग और किशन चंद को सरकार ने सस्पेंड किया था। हम कोई कोताही नहीं बरत रहे हैं और जिसने गड़बड़ी की है उसे उसकी सजा दिला कर रहेंगे।
शासन ने क्यों दबाई है फाइल?
लेकिन प्रवर्तन निदेशालय ने जब वित्तीय लेनदेन की जानकारी मांगी है तो उसे शासन स्तर पर मंजूरी अभी क्यों नहीं मिली है? यह एक ऐसा सवाल है जिसका जवाब मिलना बाकी है।