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भारत के सबसे हैंडसम मुख्यमंत्री बने पुष्कर सिंह धामी

उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अपनी सरल और सौम्य छवि के लिए काफी लोकप्रिय हैं। लोगों के बीच जाकर उनकी समस्याओं को सुनना और धर्मांतरण जैसे कड़े कानून बनाकर मुख्यमंत्री धामी चर्चा में बने हुए हैं। हाल ही में हुए “न्यूज़ एरिना इंडिया” के सर्वे में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को भारत के सबसे हैंडसम मुख्यमंत्री का खिताब मिला है।

न्यूज़ एरीना ने यह सर्वे 4 मुख्यमंत्रियों के बीच करवाया था जिसमें पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी और गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के नाम शामिल थे जिनमें मुख्यमंत्री धामी 38 प्रतिशत वोटों के साथ पहले स्थान पर रहे, वहीं गोवा मुख्यमंत्री 32 प्रतिशत वोटों के साथ दूसरे व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी तीसरे व पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान चौथे स्थान पर रहे।

हैंडसम मुख्यमंत्रियों के इस सर्वे में इन 4 मुख्यमंत्रियों के नाम शामिल करने से पहले भी जनता से राय ली गई थी, जिसमें 20 हजार के लगभग लोगों ने चार नामों का सुझाव दिया था, जिसके बाद ट्विटर पर कराए गए इस सर्वे में 23 हजार से ज्यादा लोगों ने मुख्यमंत्री धामी के नाम पर मुहर लगाई। इससे पहले हुए ABP न्यूज़ के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री के सर्वे में भी उत्तराखण्ड के सीएम को 6वां स्थान मिला था।

नैनीताल हाई कोर्ट ने दिया सरकार को झटका

उत्तराखंड सरकार को एक बार फिर से झटका लगा है । झटका राज्य सरकार को नैनीताल हाईकोर्ट ने दिया है । नैनीताल हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के उस फैसले को पलट दिया जिसमें चमोली की जिला पंचायत अध्यक्ष रजनी भंडारी को बर्खास्त किया गया था। रजनी भंडारी 2019 में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर जीत हासिल करने में कामयाब हुई थी। लेकिन राज्य सरकार ने वित्तीय गड़बड़ी के आरोप में रजनी भंडारी को 25 जनवरी को उनके पद से हटा दिया। रजनी भंडारी इसके बाद नैनीताल हाईकोर्ट की शरण में गई। रजनी भंडारी की तरफ से उसके वकीलों ने जोरदार पैरवी की और कोर्ट में दलीलें पेश की कि रजनी भंडारी को हटाने के लिए पंचायती राज की नियमावली का पालन नहीं किया गया है। इसके बाद नैनीताल हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के फैसले को बदल दिया ।अब रजनी भंडारी एक बार फिर से जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर बहाल हो गई है । आपको बता दें कि रजनी भंडारी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व कैबिनेट मंत्री राजेंद्र भंडारी की पत्नी है। राजेंद्र भंडारी वर्तमान समय में बद्रीनाथ विधानसभा सीट से विधायक है। राज्य सरकार को इससे पहले उत्तरकाशी के जिला पंचायत अध्यक्ष दीपक बिजलवान को हटाने के मामले में भी सुप्रीम कोर्ट झटका दे चुका है ।दीपक बिजलवान पर भी वित्तीय गड़बड़ी के आरोप लगाते हुए राज्य सरकार ने उन्हें बर्खास्त कर दिया था। इसके बाद दीपक बिजलवान नैनीताल हाईकोर्ट होते हुए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे, जहां उनकी फिर से बहाली का रास्ता साफ हुआ।रजनी भंडारी पर 2012 में नंदा राज यात्रा के लिए कामों के आवंटन में गड़बड़ी के आरोप लगे थे। 10 साल बाद राज्य सरकार ने अपनी कार्रवाई की है इससे राज्य सरकार की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होते हैं।

जोशीमठ में दरारों वाले भवनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं

सचिव आपदा प्रबन्धन डा0 रंजीत कुमार सिन्हा ने जोशीमठ नगर क्षेत्र में हो रहे भू-धंसाव एवं भूस्खलन के उपरान्त राज्य सरकार द्वारा किये जा रहे राहत व बचाव तथा स्थायी/अस्थायी पुनर्वास आदि से सम्बन्धित किये जा रहे कार्यो की जानकारी देते हुए बताया कि जोशीमठ में अग्रिम राहत के तौर पर 3.50 करोड़ रूपये की धनराशि 233 प्रभावित भूस्वामियों को वितरित कर दी गई है |

105 प्रभावित किरायेदारों को 52.50 लाख की धनराशि तत्काल राहत के रूप में वितरित की गई है | सचिव आपदा प्रबन्धन ने जानकारी दी है कि जोशीमठ में प्रारम्भ में निकलने वाले पानी का डिस्चार्ज जो कि 06 जनवरी 2023 को 540 एल.पी.एम. था, वर्तमान में घटकर 170 एलपीएम हो गया है।

अस्थायी रूप से चिन्हित राहत शिविरों में जोशीमठ में कुल 661 कक्ष हैं जिनकी क्षमता 2957 लोगों की है तथा पीपलकोटी में 491 कक्ष हैं जिनकी क्षमता 2205 लोगों की है। अभी तक 863 भवनों में दरारें दृष्टिगत हुई है। दरारों वाले भवनों की संख्या में बढ़ोतरी नहीं हुई है | उन्होनें जानकारी दी कि गांधीनगर में 01, सिंहधार में 02, मनोहरबाग में 05, सुनील में 07 क्षेत्र / वार्ड असुरक्षित घोषित किए गए हैं। 181 भवन असुरक्षित क्षेत्र में स्थित है। 248 परिवार सुरक्षा के दृष्टिगत अस्थायी रूप से विस्थापित किये गये हैं। विस्थापित परिवार के सदस्यों की संख्या 900 है। 41 प्रभावित परिवार रिश्तेदारों या किराए के घरों में चले गए हैं |

UKSSSC Update.गड़बड़ी में शामिल आयोग के अधिकारियों पर कार्रवाई करने से कौन रोक रहा है?

उत्तराखंड अधीनस्थ सेवा चयन आयोग यानी यूकेएसएसएससी के पूर्व अधिकारियों को शासन स्तर पर बैठे कुछ लोगों का संरक्षण मिल रहा है। यही वजह है कि यूकेएसएसएससी के पूर्व सचिव संतोष बडोनी और अन्य पांच अधिकारियों के खिलाफ विजिलेंस मुकदमा दर्ज नहीं करवा रही है । विजिलेंस ने अपने छानबीन के बाद मुकदमा दर्ज करने की फाइल शासन को भेजी थी जिसे शासन ने खारिज कर दिया।

लेकिन विजिलेंस अपनी कार्रवाई को लगातार आगे बढ़ा रही है। और एक बार फिर से वह शासन में अनुमति के लिए फाइल भेज रही है। शासन की तरफ से फाइल को खारिज किए जाने को लेकर टिप्पणी भी पता चली है। खबर है कि शासन ने फाइल को मंजूर नहीं करने के पीछे भी एक तर्क दिया है। 2016 में आयोग में भर्ती प्रक्रिया शुरू हुई थी और आरएमएस टेक्नोसोल्यूशंस नाम की कंपनी ने भर्ती प्रक्रिया को करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

यूकेएसएसएससी के पूर्व सचिव संतोष बडोनी और अन्य पांच अधिकारियों के खिलाफ विजिलेंस मुकदमा दर्ज नहीं करवा रही है

आरएमएस टेक्नोसोल्यूशंस के कर्ताधर्ता तो जेल की सलाखों के पीछे हैं। लेकिन इस कंपनी को किसने काम दिया इसको लेकर ही मशक्कत हो रही है। विजिलेंस और एसटीएफ ने अपनी जांच में यह तो पता लगा ही लिया कि ना सिर्फ प्रशासनिक स्तर पर गड़बड़ी हुई है । बल्कि आरएमएस टेक्नोसोल्यूशंस को काम देने के लिए वित्तीय गड़बड़ी भी की गई है। शासन की तरफ से कहा गया है कि 2016 में जब काम दिया गया था उसके बाद की सारी फाइलें उसके पास नहीं पहुंची है। इसलिए मुकदमा दर्ज करने की मंजूरी फिलहाल नहीं दी जा सकती।

उत्तराखंड में अब स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी को दूर करने के लिए मास्टर प्लान तैयार

स्वास्थ्य सचिव डॉ आर राजेश कुमार ने अवगत कराया कि लगातार पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा की जा रही है। कई जगहों से हमें यह जानकारी मिली कि विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले मरीजों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. लेकिन अब राज्य सरकार विशेषज्ञों को तैनात करने की दिशा में काम कर रही है.

डॉक्टर आर राजेश कुमार ने अवगत कराया कि स्वास्थ्य विभाग के पास ना तो दवाइयों की कमी है, ना सुविधाओं की कमी है और न ही अस्पतालों में मशीनों की कमी है। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर ना होने से कई बार समस्या बढ़ जाती थी। इसे अब दुरुस्त कर लिया जाएगा।

उत्तराखंड में अब स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी को दूर करने के लिए मास्टर प्लान तैयार किया गया है । राज्य के स्वास्थ्य विभाग ने इसके लिए सारी तैयारियां कर ली है। स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स की कमी के कारण जहां पहाड़ों और ग्रामीण क्षेत्रों में मरीजों को दिक्कत होती थी अब उन दिक्कतों को दूर कर लिया जाएगा।

सभी के स्वास्थ्य का ठीक से ध्यान रखा जाए इसके लिए नेशनल हेल्थ मिशन लगातार अपनी तैयारियों में जुटा हुआ है। इसी के अंतर्गत 16 फरवरी को पहले चरण के इंटरव्यू किए जाने हैं। राज्य में विशेषज्ञ डॉक्टर को अब राज्य सरकार की तरफ से वह तमाम सुविधाएं मिल सकेंगी जो उन्हें निजी क्षेत्र में मिलती है। इसके लिए स्वास्थ्य विभाग की लगातार तैयारियों में जुटा हुआ था।

राज्य के स्वास्थ्य सचिव डॉ आर राजेश कुमार ने अवगत कराया कि लगातार पहाड़ी क्षेत्रों में स्वास्थ्य विभाग की समीक्षा की जा रही है। कई जगहों से हमें यह जानकारी मिली कि विशेषज्ञ डॉक्टर की कमी के कारण ग्रामीण क्षेत्र में रहने वाले मरीजों को खासी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. लेकिन अब राज्य सरकार विशेषज्ञों को तैनात करने की दिशा में काम कर रही है. डॉक्टर आर राजेश कुमार ने अवगत कराया कि स्वास्थ्य विभाग के पास ना तो दवाइयों की कमी है, ना सुविधाओं की कमी है और न ही अस्पतालों में मशीनों की कमी है। लेकिन विशेषज्ञ डॉक्टर ना होने से कई बार समस्या बढ़ जाती थी। इसे अब दुरुस्त कर लिया जाएगा।
राज्य का स्वास्थ्य विभाग एक नए मिशन के साथ तैयारियों में जुटा हुआ है ताकि प्रत्येक नागरिक को सरकारी अस्पतालों में बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सके।

Uttarakhand. बद्रीनाथ यात्रा को लेकर संशय

विश्व प्रसिद्ध बद्रीनाथ धाम की यात्रा पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं। जोशीमठ से होते हुए जो मार्ग बद्रीनाथ धाम तक पहुंचता है उस रास्ते में भी अब दरारें पड़ने लगी है। उत्तराखंड में काफी समय से बद्रीनाथ धाम के लिए बाईपास रोड बनाने की तैयारी की गई थी। लेकिन स्थानीय निवासियों की नाराजगी और विरोध के चलते यह बाईपास नहीं बन पाया ।

जोशीमठ से कुछ पहले हेलंग से इस बाईपास का निर्माण होना था। जो मारवाड़ी क्षेत्र तक जाना था। यहां से बद्रीनाथ धाम तक पहुंचना थोड़ा आसान होता। अब एक बार फिर से हेलंग मारवाड़ी बायपास मार्ग की चर्चा होने लगी है। बद्रीनाथ धाम के कपाट खोले जाने की तारीखों का ऐलान वसंत पंचमी के दिन किया जाता है। लेकिन इस बार यात्रा पर संकट दिखाई दे रहा है।

2022 में बद्रीनाथ धाम में 17 लाख तीर्थयात्री पहुंचे थे । एक अनुमान के मुताबिक जोशीमठ शहर के बीच से एक से डेढ़ लाख वाहनों की आवाजाही हुई थी। यानी अगर मार्ग असुरक्षित हुआ तो वाहनों की आवाजाही प्रभावित होगी जिससे यात्रा भी प्रभावित हो सकती है। देश के आठ प्रतिष्ठित संस्थान जोशीमठ संकट पर लगातार अपना अध्ययन कर रहे हैं। नेशनल डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी को इन सभी 8 संस्थानों ने अपनी प्रारंभिक रिपोर्ट उपलब्ध करा दी है।

2013 में केदारनाथ त्रासदी में भी यात्रा पूरी तरीके से प्रभावित हुई थी । लेकिन इस बार उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार समय रहते कोई उपाय निकाल लेगी ।और यात्रा बाधित होने जैसा संकट नहीं आएगा

सरकार ने दिया राहत पैकेज

  1. अगले छह महीने तक हर परिवार को 5 हज़ार रूपए प्रतिमाह दिए जायेंगे
  2. भू-धंसाव प्रभावितों के भवनों का निरीक्षण एक जिला स्तरीय समिति करेगी नुक्सान का आंकलन किया जायेगा तभी मुआवजा निर्धारित होगा .
  3. भू-धंसाव प्रभावित परिवारों को राहत शिविर के रूप में होटल या अन्य आवासीय इकाइयों में ठहराए जायेगा . वास्तविक व्यय अथवा 950 रुपये प्रतिदिन प्रतिकक्ष, जो भी कम हो, उपलब्ध कराया जायेगा. इस अवधि में उन्हें भोजन के लिए प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 450 रुपये दिए जाएंगे.
  4. पुनर्वास के लिए कोटी फार्म, पीपलकोटी, गोचर, ग्राम गौख सेलंग तथा ग्राम ढाक में चयनित भूखंडों के क्षेत्रीय सर्वेक्षण के उपरांत वहां प्री-फेब्रीकेटेड संरचनाओं के निर्माण
  5. विस्थापन नीति निर्धारित होने से पहले अग्रिम धनराशि के रूप में डेढ लाख रुपये दिए जा रहे हैं.
  6. नवंबर 2022 से अगले छह माह तक के लिए बिजली एवं पानी के विद्युत बिल माफ.
  7. बैंकों आदि से लिए ऋण की वसूली एक साल के लिए स्थगित.
  8. प्रदेश के सभी पर्वतीय शहरों की धारण क्षमता का अध्ययन .

आइसोटोप सिग्नेचर के जरिये हो सकता है खुलासा

13 जनवरी को पहाड़ों पर बारिश हुई. जोशीमठ, औली और दूसरे क्षेत्रों में भी बरसात होने और बर्फ गिरने के कारण पानी का रिसाव एक बार फिर बढ़ गया. इस पर लगातार नज़र रखी जा रही है.

डॉ रंजीत सिन्हा,सचिव ,आपदा प्रबंधन

जे पी कॉलोनी में आ रहे पानी का स्रोत क्या है इस पर भी बहस छिड़ी हुई है. मटमैला पानी अपने साथ कई तरह के केमिकल्स और गन्दगी लेकर आ रहा है. साल शुरू होते ही जोशीमठ में आई इस मुसीबात में ये जलधारा भी एक पहेली बनी हुई है. कुछ दिन तक यहाँ पानी की जलधारा का स्रोत क्या है इसे पता लगाने की कोशिश की जा रही है. नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ़ हाइड्रोलॉजी ने यहाँ के नमूने इकट्ठे किये है. 4 जनवरी को यहाँ से 550 लीटर पानी प्रति मिनट की दर से निकल रहा था जो 13 जनवरी तक घटकर 177 लीटर प्रति मिनट हो गया था. कई वैज्ञानिकों ने कहा कि इस पानी के निकलने की रफ़्तार में कमी आते ही समस्या कम हो जाएगी. लेकिन 14 जनवरी को फिर से पानी निकलने की रफ़्तार बढ़कर 240 लीटर प्रति मिनट आंकी गई.

मारवाड़ी में बनी जे पी कॉलोनी जोशीमठ का सबसे निचला क्षेत्र है और जोशीमठ शहर से करीब ९ किलोमीटर दूर है. ऊपर की पहाड़ियों के बीच से होकर पानी यहाँ आने की जांच के लिए कई तकनीकों का सहारा लिया जा सकता है. पानी कहाँ से रिस रहा है या इसका मूल स्रोत क्या है इसका पता  आइसोटोप सिग्नेचर के जरिये लगाया जा सकता है. उंचाई पर पानी के जितने भी स्रोत हैं उनके नमूने लेकर इस मटमैले पानी से मिलान कराकर तस्वीर साफ़ हो सकती है.

एन टी पी सी पर विवाद

इस बीच विष्णुगाड तपोवन परियोजना पर काम कर रही देश की जानी मानी कंपनी एन टी पी सी यानी नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन पर भी सवाल उठने लगे हैं. स्थानीय लोगों का कहना है कि एन टी पी सी की सुरंग जोशीमठ के ठीक नीचे से निकल रही है. इस पर काम चल रहा है और इस परियोजना के कारण पहाड़ अस्थिर हुआ है. हालाकिं सरकारी तौर पर ऐसी कोई रिपोर्ट सामने नहीं आई है. लेकिन देश के प्रतिष्ठित वैज्ञानिक इस पर अपना अध्ययन कर रहे हैं. इस बीच एन टी पी सी ने भी भारत सरकार को परियोजना और सुरंग से सम्बंधित विस्तृत रिपोर्ट भेजी है. एन टी पी सी का दावा है की उसकी सुरंग पहाड़ी से काफी नीचे है. इस पर पिछले काफी समय से कोई काम भी नहीं चल रहा है. जिस तरह जोशीमठ में जे पी कॉलोनी में पानी निकल रहा है वैसा कोई पानी सुरंग से नहीं निकल रहा है.

वैसे ये कोई पहला मामला नहीं है जब एन टी पी सी के प्रोजेक्ट्स पर सवाल खड़े हुए हैं. 2009-10 में सरकार को उत्तरकाशी जनपद में भागीरथी नदी पर एनटीपीसी का लोहारिनागपाला प्रोजेक्ट बंद करना पड़ा था. इस प्रोजेक्ट का काफी काम हो चुका था. प्रोजेक्ट पर लगभग ढाई हज़ार करोड़ रूपए खर्च भी हो चुके थे. लेकिन 600 मेगावाट की परियोजना का पॉवरहाउस बनाने के साथ साथ सुरंग निर्माण के लिए जब काम शुरू हुआ तो आस पास के कई गाँवों में बने भवनों में दरारें पड़ने लगी. इसके बाद परियोजना का विरोध शुरू हुआ. उत्तरकाशी से लेकर देहरादून और दिल्ली तक ये ख़बरें पंहुचने लगी. इसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉक्टर मनमोहन सिंह ने मंत्रिमंडल समूह का गठन किया. वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी , ऊर्जा मंत्री सुशील कुमार शिंदे और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश उस समूह का हिस्सा थे. इसके बाद कई तरह से परियोजना की जाँच परख हुई. इसके बाद पर्यावरण पर पड़ते खतरे को देखते हुए परियोजना को बंद करने का आदेश तत्कालीन UPA सरकार को देना पड़ा. परियोजना बंद करने के साथ साथ केंद्र सर्कार ने इस पुरे 135 किलोमीटर के हिस्से को ईको सेंसिटिव जोन घोषित कर दिया. इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में 2 अन्य प्रस्तावित बाँध परियोजनाओं को भी शुरू होने से पहले ही बंद करने का फैसला किया गया. यानी सरकार ने माना था कि बांध परियोजनाओं से पर्यावरण को भयंकर खतरा है.

मध्य प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री और पूर्व केन्द्रीय मंत्री ऊमा भारती भी पहाड़ों में बड़े बांधों के खिलाफ हैं. ऊमा भारती जोशीमठ की आपदा के बाद यहाँ पंहुची . उन्होंने यहाँ पंहुचकर कहा कि केंद्र में जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार बनी तो उन्हें भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई. वो  पहाड़ों में बड़े बाँध का विरोध कर रही थी तो उनको हटाने दिया गया. ऊमा भारती कहती हैं कि बांध निर्माण करने वाली कंपनियों की लॉबी बहुत मज़बूत है. ऊमा भारती के इस बयान के बाद नया विवाद खडा हो गया. इसके बाद ऊमा भारती ने देहरादून में मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से भी मुलाक़ात की.

इसरो की रिपोर्ट पर हुआ विवाद  

जोशीमठ संकट के बीच देश की प्रतिष्ठित संस्था इसरो ने उपग्रह के जरिये ली गई तस्वीरें जारी की. जब ये तस्वीरें मीडिया में आई तो पूरे देश में हंगामा हो गया. इसरो की रिपोर्ट के मुताबिक़ जोशीमठ हर साल 6.62 सेंटीमीटर धंस रहा है. रिपोर्ट में बताया गया कि 12 दिन में जोशीमठ 5.4 सेंटीमीटर धंस गया. पिछले साल अप्रैल से नवम्बर के बीच जोशीमठ 8.9 सेंटीमीटर धंसा. करीब 2 साल की रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद इसरो ने ये रिपोर्ट जारी की थी. इसमें जोशीमठ और आस पास के 6 किलोमीटर क्षेत्र की तस्वीरों का बारीकी से अध्ययन करने का दावा किया गया था. इस रिपोर्ट पर कई वैज्ञानिकों ने भी सवाल उठा दिए थे. इसके बाद राज्य सरकार ने इसरो से बात की और इन तस्वीरों को वेबसाइट से हटवाया. लेकिन आज भी इन्टरनेट मीडिया में ये तस्वीरें मौजूद हैं.

असल में जोशीमठ में भू-धंसाव एक सीमित दायरे में ही हो रहा है. जोशीमठ जिस पहाड़ी के ऊपर बसा हुआ है उस पहड़ी के बीच से एक फाल्ट लाइन जा रही है. इस फाल्ट लाइन के आस पास बने भवन ही प्रभावित हो रहे हैं. चमोली जनपद के प्रभारी मंत्री डॉ धन सिंह रावत का कहना है कि इसरो की तस्वीरों से भय का वातावरण पूरे जोशीमठ में बन गया. इसलिए सरकार को इसरो से बात करनी पड़ी. इसके बाद जोशीमठ पर काम कर रहे वैज्ञानिकों को मीडिया से बात न करने के भी निर्देश दिए गए. सरकार का तर्क है कि डाटा का विश्लेषण हर कोई अपने अपने स्तर से करता है ऐसे में कई भ्रामक जानकारियाँ सामने आती हैं .